सर्वपितृ अमावस्या 2025: तिथि, महत्व और सूर्य ग्रहण का साया

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सर्वपितृ अमावस्या पितरों को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है। यह आश्विन मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन, लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, उनका तर्पण करते हैं और उनके नाम पर दान करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से पितरों को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इस वर्ष, 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाएगी।

सर्वपितृ अमावस्या का महत्व

सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है। पितृ पक्ष में, लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। सर्वपितृ अमावस्या पर, उन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती है।

कासगंज के सोरों में पितृ तर्पण का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यहां तर्पण करने से गया, काशी और प्रयागराज से भी अधिक पुण्य मिलता है। भगवान वराह की मोक्ष स्थली के रूप में प्रसिद्ध सोरों में स्थित हरी की पैड़ी गंगा घाट पर 16 दिनों तक पितृ तर्पण होता है।

सूर्य ग्रहण का साया

इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का साया भी रहेगा। हालांकि, यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा और इसका सूतक समय भी मान्य नहीं होगा। फिर भी, ग्रहण के दौरान कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए।

सूर्य ग्रहण के दौरान क्या करें और क्या न करें

  • ग्रहण के दौरान भोजन न करें।
  • ग्रहण के दौरान यात्रा न करें।
  • ग्रहण के दौरान कोई भी शुभ कार्य न करें।
  • ग्रहण के बाद स्नान करें और दान करें।

सर्वपितृ अमावस्या एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें अपने पितरों को याद करने और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन, हमें अपने पितरों के नाम पर दान करना चाहिए और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

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