शीतल देवी: बिना हाथों के तीरंदाजी में स्वर्ण जीतने वाली प्रेरणादायक कहानी

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जम्मू-कश्मीर के एक छोटे से गांव से निकलकर, शीतल देवी ने पैरा-तीरंदाजी की दुनिया में इतिहास रच दिया है। जन्म से ही दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद, शीतल ने अपनी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के बल पर विश्व स्तर पर पहचान बनाई है। उनकी कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि यदि मन में लगन हो तो कोई भी बाधा पार की जा सकती है।

फोकोमेलिया से जूझती, फिर भी हार नहीं मानी

2007 में किश्तवाड़ (जम्मू और कश्मीर) के लोईधर में जन्मी शीतल देवी को फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ जन्मजात स्थिति थी, जिसके कारण उनके हाथ नहीं थे। हालांकि, शीतल ने कभी भी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उन्होंने अपने पैरों से दैनिक कार्य करना सीखा और पेड़ों पर चढ़ने जैसे काम भी आसानी से कर लेती थीं। उनकी प्रारंभिक जीवन की कठिनाइयों ने उन्हें एक मजबूत नींव दी, जिसने उन्हें खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।

सेना ने दिखाई राह, तीरंदाजी में बनाया मुकाम

2019 में, राष्ट्रीय राइफल्स ने एक स्थानीय कार्यक्रम के दौरान शीतल की प्रतिभा को पहचाना। सेना ने उनकी शिक्षा और चिकित्सा जरूरतों में सहायता की। इसके बाद, अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वाधवान जैसे कोचों ने उन्हें तीरंदाजी का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने अमेरिकी तीरंदाज मैट स्टुट्ज़मैन से प्रेरणा लेते हुए अपने पैरों और ठोड़ी का उपयोग करके तीर चलाना सीखा। 2022 में, उन्होंने अपने खेल के सफर की शुरुआत की और तब से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

पेरिस पैरालिंपिक में दुनिया ने देखा हुनर

पेरिस पैरालिंपिक के दौरान शीतल की अनूठी शूटिंग शैली - अपने पैरों और ठोड़ी का उपयोग करके - पूरी दुनिया में वायरल हो गई। उनके बुल-आई हिट करने वाले वीडियो ने लाखों लोगों को प्रेरित किया और उन्हें व्यापक प्रशंसा और मीडिया कवरेज मिली। उनकी कहानी दृढ़ता का प्रतीक बन गई, यह दिखाती है कि कैसे अपरंपरागत तरीके भी बाधाओं के खिलाफ विजयी हो सकते हैं।

एशियाई पैरा खेलों में स्वर्णिम प्रदर्शन

प्रशिक्षण के कुछ ही महीनों के भीतर, शीतल ने 2022 में हांग्जो में एशियाई पैरा खेलों में दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने दो स्वर्ण पदक (व्यक्तिगत और मिश्रित टीम कंपाउंड) और एक रजत पदक युगल में जीता। अनुभवी विरोधियों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते हुए, उनकी सफलता ने असाधारण अनुकूलन क्षमता और निडरता का प्रदर्शन किया, जिससे वह भारत के सबसे होनहार पैरा-एथलीटों में से एक के रूप में उभरीं। 2023 विश्व पैरा तीरंदाजी चैंपियनशिप में भी उन्होंने रजत पदक जीता था।

आगे की राह

शीतल देवी की कहानी खेल जगत के लिए एक मिसाल है। उनकी उपलब्धियां न केवल उन्हें बल्कि पूरे भारत को गौरवान्वित करती हैं। वे उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा हैं जो किसी भी तरह की चुनौती का सामना कर रहे हैं।

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