एचडीएफसी सीईओ शशिधर जगदीशन की याचिका से चौथे जज ने खुद को अलग किया
बॉम्बे हाईकोर्ट में एचडीएफसी बैंक के सीईओ शशिधर जगदीशन द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई से मंगलवार को एक और जज ने खुद को अलग कर लिया। जगदीशन ने लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट की ओर से दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है।
मंगलवार की सुबह, याचिका को जस्टिस रवींद्र घुगे और गौतम अंखाड की खंडपीठ के समक्ष पेश किया गया। हालांकि, व्यक्तिगत कठिनाई का हवाला देते हुए, जस्टिस अंखाड, जिन्होंने 4 जुलाई को पद की शपथ ली थी, ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
जस्टिस अंखाड के हटने के साथ, हाईकोर्ट के जजों की कुल संख्या जो मामले की सुनवाई के लिए तैयार नहीं हैं, 4 तक पहुंच गई है।
शुरुआत में, जगदीशन की याचिका को 18 जून को जस्टिस अजय गडकरी और राजेश पाटिल की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इस बेंच को वर्तमान में एफआईआर को रद्द करने की याचिकाओं की सुनवाई का काम सौंपा गया है। हालांकि, जस्टिस पाटिल ने कुछ व्यक्तिगत कठिनाई का हवाला दिया और मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।
बाद में, जगदीशन की कानूनी टीम, जिसका नेतृत्व वरिष्ठ वकील अमित देसाई कर रहे थे, ने जस्टिस सारंग कोतवाल और श्याम चांडक की बेंच के समक्ष अपनी याचिका पेश की। हालांकि, जस्टिस कोतवाल ने खुद को अलग कर लिया।
जस्टिस महेश सोनाक और जितेंद्र जैन की एक खंडपीठ को तब 25 जून को जगदीशन की कानूनी टीम द्वारा स्थानांतरित किया गया था। याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत होते हुए, जस्टिस जैन ने विशेष रूप से खुलासा किया कि उनके पास एचडीएफसी बैंक के शेयर हैं और इसके बावजूद कोई आपत्ति नहीं की गई। तदनुसार याचिका को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया गया।
मामले का महत्व
यह मामला एचडीएफसी बैंक के सीईओ से जुड़ा हुआ है, जो भारत के सबसे बड़े निजी बैंकों में से एक है। जजों का बार-बार खुद को अलग करना मामले को और जटिल बनाता है और कानूनी प्रक्रिया में देरी कर सकता है।
आगे की कार्यवाही
यह देखना होगा कि बॉम्बे हाईकोर्ट इस मामले को आगे कैसे संभालता है और क्या कोई अन्य बेंच इस पर सुनवाई के लिए सहमत होती है।