मस्जिद में अखिलेश की बैठक: आस्था या राजनीति? विवाद गहराया

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संसद के बगल वाली मस्जिद में समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके सांसदों की कथित बैठक को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मुलाकात को राजनीतिक रंग दे रही है, जबकि सपा इसे आस्था का मामला बता रही है।

डिप्टी सीएम का आरोप, अखिलेश का जवाब

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अखिलेश यादव पर 'नमाजवादी' होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि संविधान स्पष्ट रूप से धर्म को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने से रोकता है। जवाब में अखिलेश यादव ने कहा कि आस्था लोगों को जोड़ती है, और सपा जोड़ने वाली आस्था के साथ है। उन्होंने भाजपा पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाया। अखिलेश ने जोर देकर कहा कि वह सभी धर्मों में आस्था रखते हैं, जबकि भाजपा धर्म को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है।

बरेली के मौलाना भी नाराज

इस बीच, बरेली के एक बरेलवी मौलाना ने भी मस्जिद में सपा की बैठक पर नाराजगी जताई है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि मस्जिद खुदा की इबादत के लिए है, राजनीति के लिए नहीं। उन्होंने इमाम मोहिबुल्लाह नदवी पर सपा नेताओं के साथ बैठक कर पाप करने का आरोप लगाया और उनसे माफी मांगने की मांग की।

बैठक का संदर्भ

यह विवाद मंगलवार को सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद शुरू हुआ, जब अखिलेश यादव अपने सांसदों के साथ मस्जिद में बैठे थे। रामपुर से सांसद मोहिबुल्लाह नदवी भी उस मस्जिद में मौजूद थे। इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में बहस छेड़ दी है, जिसमें कुछ लोग इसे धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे सामान्य राजनीतिक गतिविधि के रूप में देख रहे हैं। यह घटना भारत में धर्म और राजनीति के बीच जटिल संबंधों को उजागर करती है।

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