IISER भोपाल: केले के छिलके और प्लास्टिक से बायोडीजल बनाने की अनूठी तकनीक!
भोपाल स्थित IISER (भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने एक अभूतपूर्व खोज की है। उन्होंने केले के छिलकों और प्लास्टिक कचरे जैसे बेकार समझे जाने वाले पदार्थों को उपयोगी बायोडीजल में बदलने का एक नया तरीका विकसित किया है। यह खोज न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि डीजल के एक सस्ते और टिकाऊ विकल्प के रूप में भी काम कर सकती है।
क्या है यह नई तकनीक?
IISER भोपाल के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. शंकर चाकमा के नेतृत्व में, वैज्ञानिकों ने को-पायरोलिसिस नामक एक विशेष तकनीक का उपयोग किया है। इस प्रक्रिया में, केले के छिलके और प्लास्टिक कचरे को एक साथ उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे बायोडीजल का उत्पादन होता है। यह बायोडीजल पारंपरिक डीजल के समान ही काम करता है और इसे डीजल वाहनों में आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए वरदान
यह खोज कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
- पर्यावरण संरक्षण: यह प्लास्टिक कचरे और जैविक कचरे को कम करने में मदद करता है, जिससे प्रदूषण कम होता है।
- सस्ता ईंधन: बायोडीजल, पारंपरिक डीजल की तुलना में सस्ता हो सकता है, जिससे आम आदमी को फायदा होगा।
- आत्मनिर्भरता: यह भारत को ईंधन के लिए आयात पर निर्भरता कम करने में मदद कर सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तकनीक स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाने और कचरे को धन में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह खोज निश्चित रूप से भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक क्रांति ला सकती है।
आगे की राह
IISER भोपाल के वैज्ञानिक अब इस तकनीक को और अधिक कुशल और किफायती बनाने पर काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है कि यह तकनीक जल्द ही व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो सके, ताकि इसका लाभ सभी को मिल सके। यह खोज दिखाती है कि कैसे वैज्ञानिक नवाचार पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।